आँख में पानी रखो होंठों पे चिंगारी रखो

आँख में पानी रखो होंठों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो,

राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो,

एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो,

आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में
कूच का ऐलान होने को है तैयारी रखो,

ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रखो या न रखो ख़्वाब मेयारी रखो,

ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो,

ले तो आए शाइरी बाज़ार में ‘राहत’ मियाँ
क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो..!!

~राहत इंदौरी

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