अपने हो कर भी जो नहीं मिलते…

अपने हो कर भी जो नहीं मिलते
दिल ये जा कर है क्यूँ वही मिलते ?

यहाँ मिलती नहीं है जिनकी ताबीरें
हाँ मगर वही ख़्वाब है हसीं मिलते,

हमको माँगा नहीं गया दिल से
कैसे मुमकिन था, हम नहीं मिलते ?

यूँ नहीं बेकार हर तलाश गई
वो नहीं तो चलो, हम ही मिलते,

ये क़यामत तो बस दिलासा है
मिलना होता नहीं, यही मिलते,

लाज़िमन सब क़ुसूर मेरा है
लोग तो सब है, बेहतरीन मिलते,

तौबा कितनी सिमट गई दुनियाँ
एक घर के नहीं, मकीं मिलते,

सारे किस्से में वो रहे मेरे
अब है अंज़ाम तो, नहीं मिलते,

उनसे मिलते हम गली गली
हमसे जो हर कही, कही मिलते..!!

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