महफ़िल से मुझको उठाने के बाद
क्या मिलेगा दिल दुखाने के बाद,
आज तो देख लूँ मैं तुम्हे गौर से
आज देखा है हमने ज़माने के बाद,
मैं समंदर की मन्नत ही करता रहा
रेत का एक घरौंदा बनाने के बाद,
नाचती है हवा अब मेरे सामने
घर के सारे दीयो को बुझाने के बाद,
यूँ न हो अपने हाथो गँवा दो मुझको
मुझ सा तुमको मिलेगा ज़माने के बाद,
सिसकियाँ रोकता ही रहा देर तक
दर्द की इन्तेहा वो बताने के बाद,
रौशनी के तलबगार रोते है क्यूँ
घर चिरागों से अपने जलाने के बाद..!!