ख़ुद अपनी ज़िल्लत ओ ख़्वारी न करना

ख़ुद अपनी ज़िल्लत ओ ख़्वारी न करना
किसी कमज़र्फ़ से यारी न करना,

अगर तुम शाद रहना चाहते हो
किसी की भी दिल आज़ारी न करना,

अगर तौफ़ीक़ हो सच बोलने की
तो अपनी भी तरफ़दारी न करना,

तुम्हें हम जानते पहचानते हैं
कभी हम से अदाकारी न करना

किसी के साथ कर लेना इबादत
हर एक के साथ मयख़्वारी न करना,

न गिर जाना रईस अपनी नज़र से
कभी तौहीन ए ख़ुद्दारी न करना..!!

~रईस रामपुरी

क्या कहें ये जब्र कैसा ज़िंदगी के साथ है

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