उदासी आसमाँ है दिल मेरा कितना अकेला है
परिंदा शाम के पुल पर बहुत ख़ामोश बैठा है,
मैं जब सो जाऊँ इन आँखों पे अपने होंठ रख देना
यक़ीं आ जाएगा पलकों तले भी दिल धड़कता है,
तुम्हारे शहर के सारे दिए तो सो गए कब के
हवा से पूछना दहलीज़ पे ये कौन जलता है ?
अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना
हर एक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है,
कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा
मुझे मालूम है क़िस्मत का लिखा भी बदलता है..!!
~बशीर बद्र




















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