फ़ज़ा में छाए हुए हैं उदास सन्नाटे
हों जैसे ज़ुल्मत ए शब का लिबास सन्नाटे,
तेरे ख़याल की आहट ने सर्द कर डाला
सुलग रहे थे अभी आस पास सन्नाटे,
ख़ुदी के नन्हे फ़रिश्तों को लोरियाँ दे कर
जगा न दें कहीं जिस्मों की प्यास सन्नाटे,
उठाओ संग ए सदा और ज़ोर से फेंको
बिखर ही जाएँगे ये बे क़यास सन्नाटे,
ये अहल ए ज़र्फ़ की हिम्मत को आज़माते हैं
हर एक दिल को नहीं आते रास सन्नाटे,
सलीम शाम की तारीकियाँ बढ़ाते हैं
यही दरख़्त पे लटके उदास सन्नाटे..!!
~सलीम अंसारी
























