शजर तो कब का कट के गिर चुका है

शजर तो कब का कट के गिर चुका है
परिंदा शाख़ से लिपटा हुआ है,

समुंदर साहिलों से पूछता है
तुम्हारा शहर कितना जागता है ?

हवा के हाथ ख़ाली हो चुके हैं
यहाँ हर पेड़ नंगा हो चुका है,

अब उस से दोस्ती मुमकिन है मेरी
वो अपने जिस्म के बाहर खड़ा है,

बहा कर ले गईं मौजें घरौंदा
वो बच्चा किस लिए फिर हँस रहा है..??

~सलीम अंसारी

बच्चे की ज़िद को अब तो मेरा एतिबार दे

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