सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू ए क़ातिल में है,
ऐ शहीद ए मुल्क ओ मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
ले तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है,
वाए क़िस्मत पाँव की ऐ ज़ोफ़ कुछ चलती नहीं
कारवाँ अपना अभी तक पहली ही मंज़िल में है,
रहरव ए राह ए मोहब्बत रह न जाना राह में
लज़्ज़त ए सहरा नवर्दी दूरी ए मंज़िल में है,
शौक़ से राह ए मोहब्बत की मुसीबत झेल ले
एक ख़ुशी का राज़ पिन्हाँ जादा ए मंज़िल में है,
आज फिर मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार बार
आएँ वो शौक़ ए शहादत जिन के जिन के दिल में है,
मरने वालो आओ अब गर्दन कटाओ शौक़ से
ये ग़नीमत वक़्त है ख़ंजर कफ़ ए क़ातिल में है,
माने ए इज़हार तुम को है हया, हम को अदब
कुछ तुम्हारे दिल के अंदर कुछ हमारे दिल में है,
मयकदा सुनसान ख़ुम उल्टे पड़े हैं जाम चूर
सर निगूँ बैठा है साक़ी जो तेरी महफ़िल में है,
वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है ?
अब न अगले वलवले हैं और न वो अरमाँ की भीड़
सिर्फ़ मिट जाने की एक हसरत दिल ए बिस्मिल में है..!!
~बिस्मिल अज़ीमाबादी























