भूख के एहसास को शेर ओ सुख़न तक ले चलो
या अदब को मुफ़्लिसों की अंजुमन तक ले चलो,
जो ग़ज़ल माशूक़ के जलवों से वाक़िफ़ हो गई
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो,
मुझको सब्र ओ ज़ब्त की तालीम देना बाद में
पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो,
ख़ुद को ज़ख़्मी कर रहे हैं ग़ैर के धोखे में लोग
इस शहर को रोशनी के बाँकपन तक ले चलो..!!
~अदम गोंडवी























