कोई मिला तो किसी और की कमी हुई है
सो दिल ने बे तलबी इख़्तियार की हुई है,
जहाँ से दिल की तरफ़ ज़िंदगी उतरती थी
निगाह अब भी उसी बाम पर जमी हुई है,
है इंतिज़ार उसे भी तुम्हारी ख़ुशबू का
हवा गली में बहुत देर से रुकी हुई है,
तुम आ गए हो तो अब आईना भी देखेंगे
अभी अभी तो निगाहों में रौशनी हुई है,
हमारा इल्म तो मरहून ए लौह ए दिल है मियाँ
किताब ए अक़्ल तो बस ताक़ पर धरी हुई है,
बनाओ साए हरारत बदन में जज़्ब करो
कि धूप सह्न में कब से यूँही पड़ी हुई है,
नहीं नहीं मैं बहुत ख़ुश रहा हूँ तेरे बग़ैर
यक़ीन कर कि ये हालत अभी अभी हुई है,
वो गुफ़्तुगू जो मेरी सिर्फ़ अपने आप से थी
तेरी निगाह को पहुँची तो शाइरी हुई है..!!
~इरफ़ान सत्तार























