तलाश कर न ज़मीं आसमान से बाहर
नहीं है राह कोई इस मकान से बाहर,
बस एक दो ही क़दम और थे सफ़र वाले
थकान देख न पाई थकान से बाहर,
निसाब दर्जा ब दर्जा यूँ ही बदलता है
हुआ न कोई भी इस इम्तिहान से बाहर,
उसी की जुस्तुजू अक्सर उदास करती है
वो एक जहान जो है हर जहान से बाहर,
नमाज़ियों से कहो देखें चाँद सूरज को
निकल रहे हैं मुअज़्ज़िन अज़ान से बाहर..!!
~निदा फ़ाज़ली
























