किसी के हिज्र में जीना मुहाल हो गया है
किसे बताएँ हमारा जो हाल हो गया है ?
कहीं गिरा है न रौंदा गया है दिल फिर भी
शिकस्ता हो गया है पाएमाल हो गया है,
सहर जो आई है शब के तमाम होने पर
तो इस में कौन सा ऐसा कमाल हो गया है ?
कोई भी चीज़ सलामत नहीं मगर ये दिल
शिकस्तगी में जो अपनी मिसाल हो गया है,
उधर चराग़ जले हैं किसी दरीचे में
इधर वज़ीफ़ा ए दिल भी बहाल हो गया है,
हया का रंग जो आया है उस के चेहरे पर
ये रंग हासिल ए शाम ए विसाल हो गया है,
मसाफ़त ए शब ए हिज्राँ में चाँद भी अजमल
थकन से चूर ग़मों से निढाल हो गया है..!!
~अजमल सिराज
















