मायूसी की कैफ़िय्यत जब दिल पर तारी हो जाती है
रफ़्ता रफ़्ता दीन ओ दुनिया से बे ज़ारी हो जाती है,
अव्वल अव्वल ख़ुश आता है परियों के ख़्वाबों में रहना
बाद में लेकिन ये हालत ज़ेहनी बीमारी हो जाती है,
अक़्ल पे पर्दा पड़ जाता है और हम सब कुछ खो देते हैं
जब कोई शख़्सिय्यत हम को हद से प्यारी हो जाती है,
रिज़्क़ मुक़द्दर में लिखा है फिर ये कारोबार ए जहाँ क्या
एक एक दाना कमाने में किस दर्जा ख़्वारी हो जाती है,
बाज़ मक़ाम ऐसे होते हैं जिन से आगे बढ़ जाएँ तो
उन तक वापस आने में बेहद दुश्वारी हो जाती है,
हम तो शेरी कैनवस पर बस दिल का हाल रक़म करते हैं
सच्चे जज़्बों से इस पर ख़ुद नक़्श निगारी हो जाती है,
अक्सर मुझ से महीनों काशिफ़ कोई शे’र नहीं हो पाता
ताज़ा ज़ख़्म मगर लगते ही ताज़ा कारी हो जाती है..!!
~काशिफ़ रफ़ीक़