ज़िन्दगी खाक़ न थी बस खाक़ उड़ाते गुज़री…

ज़िन्दगी खाक़ न थी बस खाक़ उड़ाते गुज़री
तुझसे क्या कहते, तेरे पास जो आते गुज़री,

दिन जो गुज़रा तो किसी याद की रौ में गुज़रा
शाम आई तो कोई ख़्वाब दिखाते गुज़री,

अच्छे वक्तो की तमन्ना में रही उम्र ए रवाँ
वक़्त ऐसा था कि बस नाज़ उठाते गुज़री,

ज़िन्दगी जिसके मुक़द्दर में हो खुशियाँ तेरी
उसको आता है निभाना, सो निभाते गुज़री,

ज़िन्दगी नाम उधर है किसी सरशारी का
और इधर दूर से एक आस लगाते गुज़री,

रात क्या आई कि तन्हाई की सरगोशी में
बु का आलम था मगर सुनते सुनाते गुज़री,

बारहा चौंक सी जाती है मसाफ़त दिल की
किसी की आवाज़ थी ये, किसी को बुलाते गुज़री..!!

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