मैं न कहता था कि शहरों में न जा यार मेरे

मैं न कहता था कि शहरों में न जा यार मेरे
सोंधी मिट्टी ही में होती है वफ़ा यार मेरे,

कोई टूटे हुए ख़्वाबों से कहाँ मिलता है
हर जगह दर्द का बिस्तर न लगा यार मेरे,

सिलसिला फिर से जुड़ा है तो जुड़ा रहने दे
दिल के रिश्तों को तमाशा न बना यार मेरे,

अपनी चाहत के शब ओ रोज़ मुकम्मल कर ले
जा ये सूरज भी तेरे नाम किया यार मेरे,

तुझ से मिलता हूँ तो रिश्ता कोई याद आता है
सिलसिला मुझ से ज़ियादा न बढ़ा यार मेरे,

ऐसा लगता है कि कुछ टूट रहा है मुझ में
छोड़ के तू मुझे इस वक़्त न जा यार मेरे,

ख़ुशनसीबी से ये साअत तेरे हाथ आई है
आसमाँ झुकने लगा हाथ बढ़ा यार मेरे..!!

~ताहिर फ़राज़

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