हमारे जैसे तुम्हे ख़राबो में मिलेंगे

हमारे जैसे तुम्हे ख़राबो में मिलेंगे
धुल पड़ी कहीं किताबो में मिलेंगे,

ज़फागर से किये वफ़ाओ में मिलेंगे
ना की हुई अपनी खताओ में मिलेंगे,

दोस्तों ! हम जैसे खाना ख़राब यहाँ
हर टूटती शय की सदाओं में मिलेंगे,

जब शाखों से बिछड़ेगा फूल कोई
तो उनकी सिसकती आहों में मिलेंगे,

जिन्हें आ जाती है रास फ़कीरी नवाब
वो लोग तो ख़ुदा की पनाहों में मिलेंगे..!!

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