हादसे ज़ीस्त की तौक़ीर बढ़ा देते हैं
ऐ ग़म ए यार तुझे हम तो दुआ देते हैं,
तेरे इख़्लास के अफ़्सूँ तिरे वादों के तिलिस्म
टूट जाते हैं तो कुछ और मज़ा देते हैं,
कू ए महबूब से चुपचाप गुज़रने वाले
अरसा ए ज़ीस्त में एक हश्र उठा देते हैं,
हाँ यही ख़ाक बसर सोख़्ता सामाँ ऐ दोस्त
तेरे क़दमों में सितारों को झुका देते हैं,
सीना चाकान ए मोहब्बत को ख़बर है कि नहीं
शहर ए ख़ूबाँ के दर ओ बाम सदा देते हैं,
हम ने उस के लब ओ रुख़्सार को छू कर देखा
हौसले आग को गुलज़ार बना देते हैं..!!
~क़ाबिल अजमेरी