ज़िंदगी ऐसे चल रही है दोस्त
जैसे मय्यत निकल रही है दोस्त,
आज जाना है ग़म की महफ़िल में
शक्ल कपड़े बदल रही है दोस्त,
बेवफ़ा तुम हो बेवफ़ा हम हैं
बर्फ़ पर नाव चल रही है दोस्त,
होश नीचे गिराएगा उस को
नींद रस्सी पे चल रही है दोस्त,
ये उदासी हमारी आँखों में
कितने नाज़ों से पल रही है दोस्त
आग कैसे बुझेगी पानी से
आग पानी में जल रही है दोस्त..!!
~इब्राहीम अली ज़ीशान
वो आ के बैठे थे जिस वक़्त आशियाने में
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