ये सच है कि हम लोग बहुत आसानी में रहें
पर नाम वही कर गए जो बख्त गिरानी में रहे,
उसकी याद कितनी देर तक साथ रही क्या कहे
गम था तो घर हो कर भी ला मकानी में रहे,
हम अपने जीवन में कभी भी न हुए तस्लीम
हम सदा किसी मुक़म्मल मिसाल के सानी में रहे,
अपनी ज़ुबान हमें अज़ीज़ और न अपनी ज़मीं
गुलामी से हम निकले तो ज़िन्दानी में रहे,
वो मेरा सोचता तो है मगर किसी और के बाद
यानि कि हम एक मौहूम से यानि में रहे,
थक हार के शल हो भी गया बूढ़ा ज़िस्म
अरमां कि जवाँ थे और जवानी में रहे,
जिनको सहरा दिया वो तिश्ना लबी को रोते रहे
जिनको दरिया मिला वो शाकी है कि पानी में रहे,
गम ए इश्क़ और गम ए जहाँ का हसीन समझौता
दोनों मेरे दिल में अपनी रवानी में रहे,
एक बार उस बेवफ़ा से दिल लगा कर
हम तो फिर सारी उम्र ही पशेमानी में रहे..!!