उम्र भर सीने में एक दर्द दबाए रखा
एक बेनाम से रिश्ते को निभाए रखा,
था मुझे वहम ओ गुमाँ कि वो फ़क़त मेरी है
और उसने भी ये भरम मेरा बनाए रखा,
आँधियाँ शर्म से हो जाएँ न पानी पानी
सर यही सोच के पेड़ों ने झुकाए रखा,
वैसे हर बात से रखा उसे वाक़िफ़ हमने
लेकिन अफ़्साना ए उल्फ़त को छुपाए रखा,
एक रिश्ता जिसे मैं दे न सका कोई नाम
एक रिश्ता जिसे ताउम्र निभाए रखा,
कूज़ा गर तुझ को बनाना ही नहीं था जब कुछ
किस लिए चाक पे ता उम्र चढ़ाए रखा..??
~अक्स समस्तीपुरी