तुम शुजाअत के कहाँ क़िस्से सुनाने लग गए
जीतने आए थे जो दुनिया ठिकाने लग गए,
उड़ रही है शहर के सारे गली कूचों में ख़ाक
जितने आशिक़ थे वो सब खाने कमाने लग गए,
रेंगती कारें उबलती भीड़ बेबस रास्ते
कल मुझे घर तक पहुँचने में ज़माने लग गए,
उस ने हम पर एक मोहब्बत की नज़र क्या डाल दी
हाथ जैसे हम ग़रीबों के ख़ज़ाने लग गए,
उम्र भर करते रहे हम एक कूचे का तवाफ़
एक साए के तआक़ुब में ज़माने लग गए,
ज़िंदगी देने लगी परहेज़गारी का सबक़
अब तो हम जैसे भी सब्ज़ी दाल खाने लग गए..!!
~शकील जमाली