समंदर और साहिल प्यास की ज़िन्दा अलामत है

ek bhatke hue lashkar ke siwa kuch bhi nahi

तुम्हारा मुन्तज़िर हूँ तो हज़ारों घर बनाता हूँवो रस्ते बनते जाते है कुछ इतने दर बनाता हूँ, जो