क़ुबूल है अब तो ज़िन्दगी का हर तोहफ़ा
क़ुबूल है अब तो ज़िन्दगी का हर तोहफ़ा मैंने ख्वाहिशो का नाम बताना छोड़ दिया, जो दिल के
क़ुबूल है अब तो ज़िन्दगी का हर तोहफ़ा मैंने ख्वाहिशो का नाम बताना छोड़ दिया, जो दिल के
यहाँ किसे ख़बर है कि ये उम्र बस इसी पे गौर करने में कट रही है, कि ये
तर्क ए ग़म गवारा है और न ग़म का यारा है अब तो दिल की हर धड़कन आ’लम
इतना एहसान तो हम पर वो ख़ुदारा करते अपने हाथो से ज़िगर चाक हमारा करते, हमको तो दर्द
इश्क़ जब एक मगरूर से हुआ तो फिर छोड़ कर अना ख़ुद को झुकाना पड़ा मुझे, उसने खेला
यहाँ पल पल चलना पड़ता हैहर रंग में ढलना पड़ता है, हर मोड़ पे ठोकर लगती हैहर हाल
कब तक यूँ बहारों में, पतझड़ का चलन होगाकलियों की चिता होगी, फूलों का हवन होगा, हर धर्म