तू ने देखा है कभी एक नज़र शाम के बाद
तूने देखा है कभी एक नज़र शाम के बाद कितने चुपचाप से लगते हैं शजर शाम के बाद, …
तूने देखा है कभी एक नज़र शाम के बाद कितने चुपचाप से लगते हैं शजर शाम के बाद, …
शाम अपनी बेमज़ा जाती है रोज़ और सितम ये है कि आ जाती है रोज़, कोई दिन आसाँ …
शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं मुस्कुरा देते है बच्चे और मर जाता हूँ …
सुबह तक मैं सोचता हूँ शाम से जी रहा है कौन मेरे नाम से, शहर में सच बोलता …
मैं सुबह बेचता हूँ, मैं शाम बेचता हूँ नहीं मैं महज़ अपना काम बेचता हूँ, इन बूढ़े दरख्तों …
जाने कितने रकीब रहते हैज़िन्दगी के क़रीब रहते है, मेरी सोचो के आस्तां से परेमेरे अपने हबीब रहते …