तस्कीन न हो जिस में वो राज़ बदल डालो
तस्कीन न हो जिस में वो राज़ बदल डालो जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो, तुम
तस्कीन न हो जिस में वो राज़ बदल डालो जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो, तुम
चिश्ती ने जिस ज़मीं में पैग़ाम ए हक़ सुनाया नानक ने जिस चमन में वहदत का गीत गाया,
दिल सोज़ से खाली है, निगह पाक नहीं है फिर इसमें अजब क्या कि तू बेबाक नहीं है,
अफ़लाक से आता है नालों का जवाब आख़िर करते हैं ख़िताब आख़िर उठते हैं हिजाब आख़िर, अहवाल ए
अनोखी वज़अ है सारे ज़माने से निराले हैं ये आशिक कौन सी बस्ती के या रब ! रहने
अजब वायज़ की दींदारी है या रब ! अदावत है इसे सारे जहाँ से, कोईअब तक न यह
ज़माना आया है बेहिजाबी का आम दीदार ए यार होगा सुकूत था पर्दादार जिसका वो राज़ अब आश्कार