अपनी खताओ पे शर्मिन्दा भी हो जाता हूँ
मुझे तुम्हारी तरह बहाने बनाना नहीं आता,
गर हूँ ख़तावार तो सर झुका भी सकता हूँ
पर घमंडी के आगे सर झुकाना नहीं आता,
मैं इस लिए भी दुनियाँ में नाकाम रह गया
मुझे तुम्हारी तरह यूँ बात बनाना नहीं आता,
तुम्हारी चिंगारी से अहल ए चमन जल गया
तुम कहते हो तुम्हे आग लगाना नहीं आता,
हम दुश्मनों से भी हँस हँस के गले मिलते है
तुम्हारी तरह सीने में खंज़र छुपाना नहीं आता..!!