ऐ लिखने वाले आख़िर तू ही क्यूँ…
ऐ लिखने वाले आख़िर तू ही क्यूँ लिखता है ? है ये दर्द सबको फिर तुझे ही क्यूँ …
ऐ लिखने वाले आख़िर तू ही क्यूँ लिखता है ? है ये दर्द सबको फिर तुझे ही क्यूँ …
अब अपने दीदा ओ दिल का भी ए’तिबार नहीं उसी को प्यार किया जिस के दिल में प्यार …
ये दिल आवेज़ी ए हयात न हो अगर आहंग ए हादसात न हो, तेरी नाराज़गी क़ुबूल मगर ये …
आरज़ू को दिल ही दिल में घुट के रहना आ गया और वो ये समझे कि मुझ को …
जताए हक़ न कैसे हम भला इक़रार पे उनके हमें फिर भी नाज़ होता है हसीं इंकार पे …
इतना एहसान तो हम पर वो ख़ुदारा करते अपने हाथों से जिगर चाक हमारा करते, हमको तो दर्द …
ज़िंदगी दी है तो जीने का हुनर भी देना पाँव बख़्शें हैं तो तौफ़ीक़ ए सफ़र भी देना, …
इस बहते हुए लहू में मुझे तो बस इन्सान नज़र आ रहा है लानत हो तुम पे तुम्हे …
किस सिम्त चल पड़ी है खुदाई मेरे ख़ुदा नफ़रत ही अब दे रही है दिखाई मेरे ख़ुदा, अम्न …
जिसने भी मुहब्बत का गीत गया है ज़िन्दगी का लुत्फ़ उसने ही उठाया है, मौसम गर्मी का हो …