नज़र से गुफ़्तुगू ख़ामोश लब तुम्हारी तरह
ग़ज़ल ने सीखे हैं अंदाज़ सब तुम्हारी तरह,
जो प्यास तेज़ हो तो रेत भी है चादर ए आब
दिखाई दूर से देते हैं सब तुम्हारी तरह,
बुला रहा है ज़माना मगर तरसता हूँ
कोई पुकारे मुझे बेसबब तुम्हारी तरह,
हवा की तरह मैं बेताब हूँ कि शाख़ ए गुलाब
लहकती है मेरी आहट पे अब तुम्हारी तरह,
मिसाल ए वक़्त में तस्वीर ए सुब्ह ओ शाम हूँ अब
मेरे वजूद पे छाई है शब तुम्हारी तरह,
सुनाते हैं मुझे ख़्वाबों की दास्ताँ अक्सर
कहानियों के पुर असरार लब तुम्हारी तरह..!!
~बशीर बद्र