मैंने माना कि तुम ज़ालिम नहीं हो मगर
क्या मालूम था कि हम तुमसे डर जाएँगे,
तेरी याद सताती रही जो रात भर मुझे
शब ए हिज़्र से बिछड़ के किधर जाएँगे,
तेरी तहरीर जो पड़ी है मेरे सिरहाने
उन वरकों के लफ्ज़ो पर बिखर जाएँगे,
यादों की गारों में जो बिखरे अल्फाज़
उन लफ्ज़ो की रौनक में ठिठुर जाएँगे,
क़ब्ल इससे कि दाद सुनो तुम हमसे
इसी वास्ते हम तुमसे मुकर जाएँगे..!!