कुछ क़दम और मुझे जिस्म को ढोना है यहाँ…

कुछ क़दम और मुझे जिस्म को ढोना है यहाँ
साथ लाया हूँ उसी को जिसे खोना है यहाँ,

भीड़ छट जाएगी पल में ये ख़बर उड़ते ही
अब कोई और तमाशा नहीं होना है यहाँ,

ये भँवर कौन सा मोती मुझे दे सकता है
बात ये है कि मुझे ख़ुद को डुबोना है यहाँ,

क्या मिला दश्त में आ कर तेरे दीवाने को
घर के जैसा ही अगर जागना सोना है यहाँ,

कुछ भी हो जाए न मानूँगा मगर जिस्म की बात
आज मुजरिम तो किसी और को होना है यहाँ,

यूँ भी दरकार है मुझ को किसी बीनाई का लम्स
अब किसी और का होना मेरा होना है यहाँ,

अश्क पलकों पे सजा लूँ मैं अभी से ‘शारिक़’
शब है बाक़ी तो तेरा ज़िक्र भी होना है यहाँ..!!

~शारिक़ कैफ़ी

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