कोई हो दर्द ए मुसलसल तो नींद आती है

कोई हो दर्द ए मुसलसल तो नींद आती है
बदन में हो कोई हलचल तो नींद आती है,

हमें सुकून मयस्सर नहीं है एक पल भी
तुम्हारी याद हो पल पल तो नींद आती है,

तलब नहीं है किसी और ख़ुशबदन की हमें
तुम्हारा पास हो आँचल तो नींद आती है,

कभी न तुम से रही गुफ़्तुगू अधूरी सी
ग़ज़ल हो जब भी मुकम्मल तो नींद आती है,

अजीब ख़ौफ़ सा लाहक़ है बस्तियों से हमें
क़रीब हो कोई जंगल तो नींद आती है,

पसंद है हमें शोरिश फ़साद गिर्द ओ नवाह
अगर हो शहर मोअत्तल तो नींद आती है,

बदल दिया है ज़माने ने यूँ हमारा मिज़ाज
सजा हुआ हो जो मक़्तल तो नींद आती है,

कड़क रही हो जो बिजली तो डर नहीं लगता
गरज रहे हों जो बादल तो नींद आती है,

कोई भी ख़्वाब डराता नहीं है अब आतिर
दिखाई दे हमें दलदल तो नींद आती है..!!

~यासीनआतिर

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