कोई हालत नहीं ये हालत है
ये तो आशोब नाक सूरत है,
अंजुमन में ये मेरी ख़ामोशी
बुर्दबारी नहीं है वहशत है,
तुझ से ये गाह गाह का शिकवा
जब तलक है बसा ग़नीमत है,
ख़्वाहिशें दिल का साथ छोड़ गईं
ये अज़िय्यत बड़ी अज़िय्यत है,
लोग मसरूफ़ जानते हैं मुझे
याँ मेरा ग़म ही मेरी फ़ुर्सत है,
तंज़ पैराया ए तबस्सुम में
इस तकल्लुफ़ की क्या ज़रूरत है ?
हम ने देखा तो हम ने ये देखा
जो नहीं है वो ख़ूबसूरत है,
वार करने को जाँ निसार आएँ
ये तो ईसार है इनायत है,
गर्मजोशी और इस क़दर क्या बात
क्या तुम्हें मुझ से कुछ शिकायत है ?
अब निकल आओ अपने अंदर से
घर में सामान की ज़रूरत है,
आज का दिन भी ऐश से गुज़रा
सर से पा तक बदन सलामत है..!!
~जौन एलिया
 




 
                                     
                                     
                                     
                                     
                                     
                                     
                                     
                                    












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