कल यूँ ही तेरा तज़किरा निकला
फिर जो यादो का सिलसिला निकला
लोग कब कब के आशना निकले
वक़्त कितना गुरेज़ पा निकला
इश्क़ में भी सियासते निकली
कुर्बतो में भी फ़ासला निकला
रात भी आज बेक़रां निकली
चाँद भी आज ग़मज़दा निकला
सुनते आये थे किस्से मज़नू के
आप जो देखा तो वाकया निकला
हमने माना वो बेवफ़ा ही सही
क्या करोगे जो बा वफ़ा निकला
मुख़्तसर थी फ़िराक की घड़ियाँ
फिर लेकिन हिसाब का निकला..!!