जो तेरे देखने से निकले हैं
वो भी दिन क्या मज़े से निकले हैं,
वो कहाँ नज़्र जाँ करें अपनी
जो परिंदे दीये से निकले हैं,
जो किसी सम्त भी नहीं जाते
हम उसी रास्ते से निकले हैं,
ज़ीस्त को पढ़ के ये हुआ रौशन
मत्न सब हाशिए से निकले हैं,
सारे अरमान आँधियों के सलीम
मेरे पर टूटने से निकले हैं..!!
~सलीम अंसारी
























