जिसने भी मुहब्बत का गीत गया है
ज़िन्दगी का लुत्फ़ उसने ही उठाया है,
मौसम गर्मी का हो कि सर्दी का हो
प्रेमियों ने तो सदा ही जश्न मनाया है,
ज़िन्दगी के दौड़ में वही अव्वल आया है
जिस किसी ने भी दमख़म दिखाया है,
वो माने चाहे न माने है ये उसकी मर्ज़ी
हमने तो सब कुछ ही उसी पे लुटाया है,
कौन समझ पाया है मुहब्बत को ज़माने में
प्रेमियों पे सदा ही ज़माने ने ज़ुल्म ढाया है,
इन्सान सीख न पाया मिल जुल के रहना
जबकि हर दौर में पीर पैगम्बर ने सिखाया है,