जनाब ए आली बिछड़ने की कोई बात नहीं
हमारे सीने में एक दिल है पाँच सात नहीं,
बहुत झिझक के किया है मुसाफ़हा तुम ने
तुम्हारे हाथ में शायद तुम्हारा हाथ नहीं,
ज़माने भर से तअल्लुक़ की पर्दादारी है
किसे बताएँ कि अब तू हमारे साथ नहीं,
हमारी ज़ात से बाहर हमें तलाश करो
हमारी ज़ात के अंदर हमारी ज़ात नहीं,
मैं चाहता हूँ तअल्लुक़ बहाल करना मगर
तुम्हारा दिल ही नहीं है तो कोई बात नहीं,
हम अपने पैरों को ये बात कैसे समझाएँ
अब उस गली में हमारे मुआमलात नहीं..!!
~इब्राहीम अली ज़ीशान
रखा नहीं था तू ने मेरा दिल सँभाल कर
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