जब से आई है दीपावली

जब से आई है दीपावली
हर तरफ़ छाई है रौशनी

हर जगह चाहतों के दिए
शाम होते ही जलने लगे

फुल-झड़ियों का बाज़ार है
ये पटाख़ों का तेहवार है

दीपों का है सुहाना समाँ
जिन से धरती बनी कहकशाँ

जितने रॉकेट पटाख़े चले
आसमाँ पर लगे हैं भले

हो गईं दूर तारीकियाँ
अब हैं रौशन ज़मीं आसमाँ

जब से आई हैं दीपावली
हर तरफ़ छाई है रौशनी

एक मौक़ा है पहचान का
दिल मिलाती है इंसान का

चाहतों की ये तस्वीर है
इक नए युग की ता’बीर है

~आदिल हयात

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