जागने वालो ता ब सहर ख़ामोश रहो
कल क्या होगा किस को ख़बर ख़ामोश रहो,
किस ने सहर के पाँव में ज़ंजीरें डालीं
हो जाएगी रात बसर ख़ामोश रहो,
शायद चुप रहने में इज़्ज़त रह जाए
चुप ही भली ऐ अहल ए नज़र ख़ामोश रहो,
क़दम क़दम पर पहरे हैं इन राहों में
दार ओ रसन का है ये नगर ख़ामोश रहो,
यूँ भी कहाँ बेताबी ए दिल कम होती है
यूँ भी कहाँ आराम मगर ख़ामोश रहो,
शेर की बातें ख़त्म हुईं इस आलम में
कैसा जोश और किस का जिगर ख़ामोश रहो..!!
~हबीब जालिब
 




 
                                     
                                     
                                     
                                     
                                     
                                     
                                     
                                     
                                     
                                    











