इसी दुनिया के इसी दौर के हैं
इसी दुनिया के इसी दौर के हैं हम तो दिल्ली में भी बिजनौर के हैं, आप इनआम किसी
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इसी दुनिया के इसी दौर के हैं हम तो दिल्ली में भी बिजनौर के हैं, आप इनआम किसी
चाहत की लौ को मद्धम कर देता है डर जाता है मिलना कम कर देता है, जल्दी अच्छे
कहानी में छोटा सा किरदार है हमारा मगर एक मेआर है, ख़ुदा तुझ को सुनने की तौफ़ीक़ दे
सब के होते हुए लगता है कि घर ख़ाली है ये तकल्लुफ़ है कि जज़्बात की पामाली है,
अगर हमारे ही दिल में ठिकाना चाहिए था तो फिर तुझे ज़रा पहले बताना चाहिए था, चलो हमी
अल्फ़ाज़ नर्म हो गए लहजे बदल गए लगता है ज़ालिमों के इरादे बदल गए, ये फ़ाएदा ज़रूर हुआ
वफ़ादारों पे आफ़त आ रही है मियाँ ले लो जो क़ीमत आ रही है, मैं उस से इतने
जुनूँ से गुज़रने को जी चाहता है हँसी ज़ब्त करने को जी चाहता है, जहाँ इश्क़ में डूब
आँख से आँख मिलाता है कोई दिल को खींचे लिए जाता है कोई, वाए हैरत कि भरी महफ़िल
न मिलता ग़म तो बर्बादी के अफ़्साने कहाँ जाते अगर दुनिया चमन होती तो वीराने कहाँ जाते ?