सदाक़त का जो पैग़म्बर रहा है
सदाक़त का जो पैग़म्बर रहा है वो अब सच बोलने से डर रहा है, कहानी हो रही है
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सदाक़त का जो पैग़म्बर रहा है वो अब सच बोलने से डर रहा है, कहानी हो रही है
होश वालों को ख़बर क्या बे ख़ुदी क्या चीज़ है इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है,
दो जवां दिलों का ग़म दूरियाँ समझती हैं कौन याद करता है हिचकियाँ समझती हैं, तुम तो खुद
कोई जो रहता है रहने दो मस्लहत का शिकार चलो कि जश्न ए बहाराँ मनाएँगे सब यार, चलो
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं इन आँखों से वाबस्ता अफ़्साने हज़ारों हैं, एक तुम ही
ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में एक पुराना ख़त खोला अनजाने में, शाम के साए बालिश्तों से नापे
ज़ुल्फ़ ओ रुख़ के साए में ज़िंदगी गुज़ारी है धूप भी हमारी है छाँव भी हमारी है, ग़म
आँख भर आई किसी से जो मुलाक़ात हुई ख़ुश्क मौसम था मगर टूट के बरसात हुई, दिन भी
ताक़तें तुम्हारी हैं और ख़ुदा हमारा है अक्स पर न इतराओ आईना हमारा है, आप की ग़ुलामी का