आदम की जात होकर इल्म बिसरा रहे हो
आदम की जात होकर इल्म बिसरा रहे हो क्यूँ मज़लूम ओ गरीब को बेवजह सता रहे हो ? …
आदम की जात होकर इल्म बिसरा रहे हो क्यूँ मज़लूम ओ गरीब को बेवजह सता रहे हो ? …
दूर कर देगा कभी साथ नहीं होने देगा ये वक़्त बेदर्द मुलाक़ात नहीं होने देगा, गम की वो …
मैं सुन रहा हूँ जो दुनियाँ सुना रही है मुझे हँसी तो अपनी ख़ामोशी पे आ रही है …
कैसी महफ़िल है ज़ालिम तेरे शहर में यहाँ हर कोई ही डूबा हुआ है ज़हर में, एक बच्ची …
चेहरे की हसी भी दिखावट सी हो रही है असल ज़िन्दगी भी बनावट सी हो रही है, अनबन …
सच ये है कि बेकार का ही हमें गम होता है जैसा हम चाहे दुनियाँ में वो बहुत …
उसे भुला के भी यादों के सिलसिले न गए दिल ए तबाह तेरे उससे राब्ते न गए, किताब …
दर्द आसानी से कब पहलू बदल कर निकला आँख का तिनका बहुत आँख मसल कर निकला, तेरे मेहमान …
ज़ब्त ए ग़म पर ज़वाल क्यों आया शिद्दतों में उबाल क्यों आया ? गुल से खिलवाड़ कर रही …
रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई, डरता हूँ …