इस बार तो ग़ुरूर ए हुनर भी निकल गया
इस बार तो ग़ुरूर ए हुनर भी निकल गया बच कर वो मुझ से बार ए दिगर भी
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इस बार तो ग़ुरूर ए हुनर भी निकल गया बच कर वो मुझ से बार ए दिगर भी
रास्ते अपनी नज़र बदला किए हम तुम्हारा रास्ता देखा किए, अहल ए दिल सहरा में गुम होते रहे
बला वो टल गई सदक़े में जिस के शहर चढ़े हमें डुबो के न अब कोई ख़ूनी नहर
हर चमकती क़ुर्बत में एक फ़ासला देखूँ कौन आने वाला है किस का रास्ता देखूँ ? शाम का
फिर गोया हुई शाम परिंदों की ज़बानी आओ सुनें मिट्टी से ही मिट्टी की कहानी, वाक़िफ़ नहीं अब
वक़्त बंजारा सिफ़त लम्हा ब लम्हा अपना किस को मालूम यहाँ कौन है कितना अपना ? जो भी
एक रात लगती है एक सहर बनाने में हम ने क्यों नहीं सोचा हमसफ़र बनाने में ? मंज़िलें
अगरचे सब यहाँ सस्ता पड़ेगा तुम्हें बस इश्क़ ही महँगा पड़ेगा, मुसव्विर से उलझने की सज़ा है हमें
छोड़ कर ऐसे गया है छोड़ने वाला मुझे दोस्तो उस ने कहीं का भी नहीं छोड़ा मुझे, बोल
अगर जो प्यार ख़ता है तो कोई बात नहीं क़ज़ा ही उस की सज़ा है तो कोई बात