नए सिरे से कोई सफ़र आग़ाज़ नहीं करता
नए सिरे से कोई सफ़र आग़ाज़ नहीं करता जाने क्यूँ अब दिल मेरा परवाज़ नहीं करता, कितनी बुरी
Sad Poetry
नए सिरे से कोई सफ़र आग़ाज़ नहीं करता जाने क्यूँ अब दिल मेरा परवाज़ नहीं करता, कितनी बुरी
एक अजब सी दुनिया देखा करता था दिन में भी मैं सपना देखा करता था, एक ख़याल आबाद
सुल्ह की हद तक सितमगर आ गया आइने की ज़द में पत्थर आ गया, आग तो सुलगी थी
सर पटकती रही दश्त ए ग़म की हवा उन की यादों के झोंके भी चलते रहे शाम से
बस एक तेरे ख़्वाब से इंकार नहीं है दिल वर्ना किसी शय का तलबगार नहीं है, आँखों में
याद करते हो मुझे सूरज निकल जाने के बाद एक सितारे ने ये पूछा रात ढल जाने के
हम को लुत्फ़ आता है अब फ़रेब खाने में आज़माएँ लोगों को ख़ूब आज़माने में, दो घड़ी के
हाथ पकड़ ले अब भी तेरा हो सकता हूँ मैं भीड़ बहुत है इस मेले में खो सकता
हमेशा दिल में रहता है कभी गोया नहीं जाता जिसे पाया नहीं जाता उसे खोया नहीं जाता, कुछ
ऐसा लगता है समझदार है दुनिया सारी मैं हूँ इस पार तो उस पार है दुनिया सारी, इस