गुलों में रंग न खुशबू, गरूर फिर भी है…
गुलों में रंग न खुशबू, गरूर फिर भी है नशे में रूप के वो चूर-चूर …
गुलों में रंग न खुशबू, गरूर फिर भी है नशे में रूप के वो चूर-चूर …
तुम जैसे तो लाखो ही थे, है और भी आएँगे मगर हम जैसे तुम्हे बहुत …
मैंने पल भर में यहाँ लोगो को बदलते हुए देखा है ज़िन्दगी से हारे हुए …
जिधर देखते है हर तरफ गमो के अम्बार देखते है हर किसी को रंज़ ओ …
बशर तरसते है उम्दा खानों को मौत पड़ती है हुक्मरानो को, ज़ुर्म आज़ाद फिर रहा …
ज़हालत की तारीकियो में गुम अहल ए वतन को वो ले कर तालीम की मशाल …
अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ लोगो के जज़्बात बदल जाते है, इंसानों की इन्हें फिक़र नहीं …