किस तवक़्क़ो’ पे क्या उठा रखिए ?
किस तवक़्क़ो’ पे क्या उठा रखिए ? दिल सलामत नहीं तो क्या रखिए ? लिखिए कुछ और दास्तान …
किस तवक़्क़ो’ पे क्या उठा रखिए ? दिल सलामत नहीं तो क्या रखिए ? लिखिए कुछ और दास्तान …
किस को मालूम है क्या होगा नज़र से पहले होगा कोई भी जहाँ ज़ात ए बशर से पहले …
क़दम रखता है जब रास्तो पे यार आहिस्ता आहिस्ता तो छट जाता है सब गर्द ओ ग़ुबार आहिस्ता …
सवालो के बदले लहज़े ऐसे कि हमें जानते ही न हो जैसे, मिजाज़ मौसम भी न बदले वो …
फ़ुगा है या दुआ है कौन जाने सदाए दर्द क्या है कौन जाने ? ख़िरद पहना न दे …
खफ़ा मत हो अभी तो प्यार के दिन है इब्तिदा ए मुहब्बत में अभी मल्हार के दिन है, …
जितने हरामखोर थे क़ुर्ब ओ जवार में परधान बनके आ गए अगली क़तार में, दीवार फाँदने में यूँ …
आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे अपने शाह ए वक़्त का यूँ मर्तबा आला रहे …
ये अमीरों से हमारी फ़ैसलाकुन जंग थी फिर कहाँ से बीच में मस्ज़िद ओ मंदिर आ गए ? …
शब ए हिज्राँ की तवालत से घबरा गया हूँ मैं उसके अंदाज़ ए मुहब्बत से घबरा गया हूँ …