तक़दीर की ग़र्दिश क्या कम थी…
तक़दीर की ग़र्दिश क्या कम थी उस पर ये क़यामत कर बैठे, बेताबी ए दिल जब हद से …
तक़दीर की ग़र्दिश क्या कम थी उस पर ये क़यामत कर बैठे, बेताबी ए दिल जब हद से …
पिछले ज़ख़्मों का इज़ाला न ही वहशत करेगा तुझ से वाक़िफ़ हूँ मेरी जाँ तू मोहब्बत करेगा, मैं …
अज़ब रिवायत है क़ातिलों का एहतराम करो गुनाह के बोझ से लदे काँधों को सलाम करो, पहचान गर …
दर्द की धूप ढले ग़म के ज़माने जाएँ देखिए रूह से कब दाग़ पुराने जाएँ, हम को बस …
धोखे पे धोखे इस तरह खाते चले गए हम दुश्मनों को दोस्त बनाते चले गए, हर ज़ख्म ज़िंदगी …
अपनों से कोई बात छुपाई नहीं जाती ग़ैरों को कभी दिल की बताई नहीं जाती, लग जाती है …
हमारे हाफ़िज़े बेकार हो गए साहिब जवाब और भी दुश्वार हो गए साहिब, उसे भी शौक़ था तस्वीर …
तेरा लहजा तेरी पहचान मुबारक हो तुझे तेरी वहशत तेरा हैजान मुबारक हो तुझे, मैं मोहब्बत का पुजारी …
मुझे आरज़ू जिसकी है उसको ही ख़बर नहीं नज़रअंदाज़ कर दूँ ऐसी मेरी कोई नज़र नहीं, मना पाबंदियाँ …
इस शहर में कहीं पे हमारा मकाँ भी हो बाज़ार है तो हम पे कभी मेहरबाँ भी हो, …