दो चार क्या हैं सारे ज़माने के बावजूद
दो चार क्या हैं सारे ज़माने के बावजूद हम मिट नहीं सकेंगे मिटाने के बावजूद, ये राज़ काश …
दो चार क्या हैं सारे ज़माने के बावजूद हम मिट नहीं सकेंगे मिटाने के बावजूद, ये राज़ काश …
यही हाल रहा साक़ी तेरे मयखानों का तो ढेर लग जाएगा टूटे हुए पैमानों का, क़हत दुनियाँ में …
अब तरसते हो कि बच्चे मेरे बोले उर्दू उन्हें अफरंग बनाने की ज़रूरत क्या थी ? आज रोते …
तारीफ़ उस ख़ुदा की जिसने जहाँ बनाया कैसी हसीं ज़मीं बनाई क्या आसमां बनाया, मिट्टी से बेल बूटे …
क़ुदरत का करिश्मा भी क्या बेमिसाल है चेहरे सफ़ेद काले पर खून सबका लाल है, हिन्दू है यहाँ …
बात अब करते है क़तरे भी समंदर की तरह लोग ईमान बदलते है कलेंडर की तरह, कोई मंज़िल …
जो नेकी कर के फिर दरिया में उसको डाल जाता है वो जब भी दुनिया से जाता है …
लेता हूँ उस का नाम भी आह ओ बुका के साथ कितना हसीन रिश्ता है मेरा ख़ुदा के …
रह के मक्कारों में मक्कार हुई है दुनिया मेरे दुश्मन की तरफ़दार हुई है दुनिया, पाक दामन थी …
मौत तो एक दिन आनी ही है ज़िन्दगी जो मिली फ़ानी ही है, शख्स वो है अक्लमंद ओ …