यूँ बने सँवरे हुए से फूल हैं गुलज़ार में
यूँ बने सँवरे हुए से फूल हैं गुलज़ार में सैर को निकली हों जैसे लड़कियाँ बाज़ार में, ये
यूँ बने सँवरे हुए से फूल हैं गुलज़ार में सैर को निकली हों जैसे लड़कियाँ बाज़ार में, ये
कर गए अश्क मेंरी आँख को जल थल क्या क्या अब के बरसा है तेरी याद का बादल
वक़्त बे वक़्त ये पोशाक मेंरी ताक में है जानता हूँ कि मेंरी ख़ाक मेंरी ताक में है,
होंठों को फूल आँख को बादा नहीं कहा तुझको तेरी अदा से ज़ियादा नहीं कहा, बरता गया हूँ
हाल ए दिल सुन के मेंरा सर ब गरेबाँ क्यूँ हैं जो किया आप ने अब उस पे
जमी हूँ बर्फ़ की सूरत पिघलना चाहती हूँ मैं हिसार ए ज़ात से बाहर निकलना चाहती हूँ मैं,
घर से निकले तो हो सोचा भी किधर जाओगे हर तरफ़ तेज़ हवाएँ हैं बिखर जाओगे, इतना आसाँ
जो गुल है याँ सो उस गुल-ए-रुख़्सार साथ है क्या गुल है वो कि जिस के ये गुलज़ार
बाम पर आता है हमारा चाँद आसमाँ से करे किनारा चाँद, आप ही की तलाश में साहब गर्दिशें
पहलू में बैठ कर वो पाते क्या दिल तो था ही नहीं चुराते क्या ? हिज्र में ग़म