आरज़ू ,हसरत, तमन्ना, मुद्दआ कोई नहीं

आरज़ू ,हसरत, तमन्ना, मुद्दआ कोई नहीं
जब से तुम हो मेरे दिल में दूसरा कोई नहीं,

बेवफ़ाई का मुझे तुझ से गिला कोई नहीं
प्यार तो मैंने किया तेरी ख़ता कोई नहीं,

चाहने वाला हूँ तेरा जब कभी मैंने कहा
कह दिया उस बेवफ़ा ने तू मेरा कोई नहीं,

मैंने जब से दिल लगाया वो न मेरा हो सका
इस से बढ़ कर दिल लगाने की सज़ा कोई नहीं,

ख़ूब है वो ज़िंदगी जो साथ गुज़रे यार के
यार बिन उल्फ़त में जीने का मज़ा कोई नहीं,

रूह की तस्कीन का चारा नहीं है मौत भी
दर्द ऐसा है मेरा जिस की दवा कोई नहीं,

अजनबी हूँ मैं शनासाओं में भी रहते हुए
जानता कोई नहीं पहचानता कोई नहीं,

काम कुछ तेरे भी होते तेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़
हाँ मगर मेरे ख़ुदा तेरा ख़ुदा कोई नहीं,

बढ़ के तूफ़ाँ में सहारा मौज ए तूफ़ाँ क्यों न दे
मेरी कश्ती का ख़ुदा है नाख़ुदा कोई नहीं,

जुस्तुजू कामिल है तो मंज़िल का मिलना शर्त है
जुस्तुजू से बढ़ के पुरनम रहनुमा कोई नहीं..!!

~पुरनम इलाहाबादी

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