जब भी तुझ को याद किया…

जब भी तुझ को याद किया
ख़ुद को ही नाशाद किया,

दिल की बस्ती उजड़ी तो
दर्द से उसे आबाद किया,

अदावत मैं हम नाक़ाम रहे
मुहब्बत ने हमें बर्बाद किया,

ख़ुद ही अपना चैन लुटा कर
मैंने तक़दीर से फ़रियाद किया,

डोर साँसों की ज़ंजीर थी
एक हिचकी ने हमें आज़ाद किया,

वो रूठ के ख़ुद ही लौट आया
जब सितम नया कोई इज़ाद किया,

इश्क़ ओ अक्ल दोनों में नवाब
मैंने क़ायम एक अल्हाद किया..!!

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