मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखता हूँ
तो पहले एक गज़ल तेरे नाम लिखता हूँ,
बदन की आँच से संवला गए है पैरहन
मैं फिर भी सुबह के चेहरे पे शाम लिखता हूँ,
चले तो टूटे चट्टानें, रुके तो आग लगे
शमीम ए गुल को नाज़ुक खिराम लिखता हूँ,
घटाएँ झूम के बरसीं झुलस गई खेती
ये हादसा है ब सद ए एहतिराम लिखता हूँ,
ज़मीं प्यासी है बूढ़ा गगन भी भूखा है
मैं अपने अहद के किस्से तमाम लिखता हूँ,
चमन को औरो ने लिखा है मयकदा बर दोश
मैं फूल फूल को आतिश ब जाम लिखता हूँ,
न राब्ता, न कोई रब्त ही रहा बेकल
उस अज़नबी को मगर मैं सलाम लिखता हूँ..!!
~बेकल उत्साही